Rajesh Saini

लोग हमसे मिल के क्या ले जायेंगे?
सिर्फ़ जीने के अदा ले ले जाएँगे
दो घड़ी बैठेंगे तेरे पास हम
और बातो का मजा ले जाएँगे ।

Tuesday, October 6, 2009

मैं आज भी उन रास्तों पे चल रहा हूँ

ये कतरे उस वक़्त की कतरने हैं जब हम एक राह पर दो कदम चाल कर खो गए थे .....
आदमी को अपने ऊपर इतना भरोसा होता है की वो जान बूझ कर गर्त में उतरता है. जब वापस आने की बात होती है तो वहाँ के प्रपंचों में ऐसा फंसता है की फिर बहार आना संभव नहीं रह जाता. कुछ यही सोच थी मेरी जब ये कतरने लिखी गयी थी.


मैं आज भी उन रास्तों पे चल रहा हूँ
जिनपर तुमने कभी पाँव रखे थे.

गर्म हवाओं से वो निशाँ तो मिट गए
पर मैं अब भी उन निशानों को ढूँढने की
नाकाम कोशिश करता हूँ.
कुछ वक़्त की रफ़्तार तेज़ थी
और कुछ मैं भी धीमा था,
की चलते चलते तुम कहाँ निकल गए
ये मुझे पता भी ना चला.
फिर भी मैं उन रास्तों पे चल रहा हूँ
की जिनपर तुमने कभी पाँव रखे थे.

ये गर्म हवाएं अब भी
कभी तेरी भीनी खुशबू लाती हैं
और मैं चैन की सांस लेता हूँ
के शायद तुम यही हो.
वो जब एक बार तुमने मुझे आवाज दी थी
और मैं तुम्हारा दीवाना हो गया था.
मैं जानता हूँ की तुम मेरे कभी थे ही नहीं.
फिर भी मैं उन रास्तों पे चल रहा हूँ
की जिनपर तुमने कभी पाँव रखे थे.


मैं हवाओं की कश्ती पे सवार
अपनी ही धुन में मुस्कुराता हुआ
सपनो की दुनिया में कही जा रहा था
और तुमने मुझे आवाज दी थी.
तेरे बेपनाह हुस्न ने मुझे
उन रास्तों में छोड़ दिया जहां से वापस आना
शायद मेरे लिए मुमकिन नहीं था.
इसलिए मैं आज भी मैं उन रास्तों पे चल रहा हूँ
की जिनपर तुमने कभी पाँव रखे थे.

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