आदमी की ख्वाहिशें
उसे जंग के मैदान पर ले जातीं हैं
कभी दौलत के लिए
कभी शौहरत के लिए
कभी औरत के लिए
मरने-मारने पर आमादा आदमी
अपने साथ लेकर निकलता है हथियार
तो अक्ल भी साथ छोड़ जाती है
ख्वाहिशों के मकड़जाल में
ऐसा फंसा रहता आदमी जिंदगी भर
लोहे-लंगर की चीजों का होता गुलाम
जो कभी उसके साथ नहीं जातीं हैं
जब छोड़ जाती है रूह यह शरीर
तो समा जाता है आग में
या दफन हो जाता कब्र में
जिन चीजों में लगाता दिल
वह भी कबाड़ हो जातीं हैं
ख्वाहिशें भी एक शरीर से
फिर दूसरे शरीर में घर कर जातीं हैं
.................................
ख्वाहिशों में अपना दिल न लगाओ
वह कभी यहां तो कभी वहां नजर आतीं हैं
एक जगह हो जाता है काम पूरा
दूसरी जगह नाच नचातीं हैं
किसी को पहुंचाती हैं शिखर पर
किसी को गड्ढे में गिरातीं हैं
Rajesh Saini
लोग हमसे मिल के क्या ले जायेंगे?
सिर्फ़ जीने के अदा ले ले जाएँगे
दो घड़ी बैठेंगे तेरे पास हम
और बातो का मजा ले जाएँगे ।
सिर्फ़ जीने के अदा ले ले जाएँगे
दो घड़ी बैठेंगे तेरे पास हम
और बातो का मजा ले जाएँगे ।
Friday, November 7, 2008
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